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२२ मई, १९७१
अगर भगवान् हमारे लिये विजय चाहें, तो वह बहुत ही प्रबल हो सकती है । बहुत प्र - ब - ल विजयकी संभावना है, हवामें नहीं, यहां । सारी बात है यह जाननेकी कि उस विजयका समय आ गया है या नहीं ।
( लंबा मौन)
मै कहती हूं , हर जगह... एक असाधारण विजयकी संभावना है । क्या उसका समय आ गया है? मुझे नहीं मालूम. । जहांतक मेरा प्रश्न है मै अपने-आपको ऐसा बना लेती हूं ( लघुताका संकेत), भौतिक रूपमें बहुत ही छोटा और मै छोड़ देती हूं... ( भगवानकि ओर खुली भुजाओंकी मुद्रा) ।
हा. तो भागवत संकल्प नीचे आ रहा है, और फिर, ये सब रचनाएं हैं जो बे आ जाती है और उसके कार्यान्वयनमें देर लगाती हैं -- मैं चाहूंगा, मै चाहूंगी कि मेरा वातावरण.. स्वच्छ, एकदम स्वच्छ ट्रांसमीटर ( प्रेषक) हो । मैं यह भी नहीं जानना चाहती कि वह क्या है, क्योंकि वह भी साधारण मानवताको ले आता है... स्वच्छ, स्वच्छ प्रेषक. उसे इस तरह आने दो ( अवतरणकी मुद्रा), अपनी पूर्ण पवित्रतामें पवित्र -- चाहे वह विकट ही क्यों न हों ।
वास्तवमें, हम नहीं जानते कि ' 'यह ऐसा क्यों है' ' और ' 'वह वैसा क्यों है,'' और हमारी दृष्टि... भले उसमें सारी धरती भी समा जाय, बहुत हंडी छोटी, छोटी - और ऐकांतिक है : हम यह चाहते हैं, हम वह नहीं चाहते.. । सबसे पहले, सबसे पहला काम है यंत्र तैयार करना... । हमें
'स्वच्छ' होना चाहिये, स्वच्छ जिसमेंसे चीजें बिना किसी विकारके, बिना किसी बाधाके निकल सकें ।
वास्तवमें, मैं अपना समय इसीमें लगा रही हू : ऐसा होनेकी कोशिश कर रही हू ।
लेकिन आप जिस विजयकी संभावनाका अनुभव कर रही है क्या वह हालकी चीज है?
हां
यह हालकी है, क्योंकि बाहरी तौरपर स्पष्ट है कि परिस्थितियां ऐसी अच्छी नहीं है -- बाहरी तौरपर ।
ओह! जानते हों... सभी परिस्थितियोंने मानों एक विभीषिकाके लिये कर लिया था ।
जी !
कुछ ही दिन पहले मानों विभीषिका सिरपर ही थी । और तब, उस समय, मेरी सारी सत्ता, मानों... (कैसे कहा जाय?) हां, वह, हम कह सकते हैं, सच्ची 'विजय' के लिये अभीप्सा थी : ऐसी विजय नहीं जिसे यह चाहता है या वह चाहता है... बल्कि सच्ची 'विजय' । ऐसा लगता है कि यही चीज सब कठिनाइयां ले आयी (ऐकांतिक संकल्प) । और तब अचानक मानों एक प्रकाश प्रकट हुआ : 'विजय' की संभावना । वह अब भी है... । यह चमत्कारिक नहीं है, दिव्य हस्तक्षेप है... 'परम प्रज्ञा' का हस्तक्षेप -- क्या वह ठोस रूप लेगा? देखें । वह आती हुई मालूम होती है । वह इस तरह आती हुई मालूम होती है -- संभावनाके रूपमें (खास ऊंचाईपर दोनों हथेलियां नीचेकी ओर) ।
नहीं, यह हालकी चीज है, बिलकुल हालकी । मै नहीं कह सकती क्यों- कि यह अचानक नहीं आयी । लेकिन यह दिनोंका प्रश्न है ।
जी हां, कुछ समयतक मैं बहुत निराशाका अनुभव करता रहा ।
यह एक बुरी वृत्ति है ।
मेरे अंदर पहले बह वृत्ति नहीं थी, फिर भी ऐसा लगता था' कि एक निराशाजनक वातावरण अंदर आ रहा है ।
जो कुछ भगवान्को नहीं चाहता वह जान-बूझकर ऐसा वातावरण तैयार करता है ताकि उन लोगोंका उत्साह भंग करे जो भगवान्को चाहते हैं । तुम्हें जरा भी... जरा भी ध्यान न देना चाहिये । यह शैतानका रास्ता रैन । निराशावाद शैतानका अस्त्र है और वह अपनी स्थितिको भांप लेता' है... (हिलानेका संकेत) । हां, तो मैं जिस संभावनाको देख रही हू, अगर वह सिद्ध हों जाय तो यह वास्तवमें विरोधी शक्तियोंपर एक निर्णायक विजय होगी - स्वभावतः, वह भरसक अपना बचाव करता है... । वह हमेशा शैतान होता है, जैसे ही तुम निराशावादकी पूछ देखो, समझ लो कि शैतान है । यह उसका महान् अस्त्र है ।
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